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परिच्छेद.] अठारा नाते. सीने कुछ अपना वृत्तान्त संक्षेपसे कह सुनाया । राजपुरुषोंने उस सुन्दरीको पकड़ लिया और अपने नगरमें लेजाकर राजाको सौंप दिया । उस सुन्दरीके रूपको देखकर राजा एकदम मोहित होगया अत एव उसे अपनी पटरानी बना ली, क्योंकि राजाके सारे अन्तेउरमें ऐसी रूपवती स्त्री न थी। अब वह अमूर्यपस्या राजपत्नी अपने समयको सानन्द व्यतीत करती है। इधर उस वानरको भी जंगलमें फिरते हुवे किसी. 'मँदारी' ने पकड़ लिया
और उसे अनेक प्रकारका नृत्यादि कृत्य सिखाया । उस वानरको गाँव गाँवमें नचाकर 'मँदारी' अपने जीवनको व्यतीत करता है । दैवयोग एक दिन वह 'मँदारी' उस वानरको लेकर उसी राजसभामें चला गया, जहांपर वह वानरपत्नी सुन्दरी राजपत्नी बनके बैठी थी। 'मँदारी' ने वानरसे नाच कराना शुरु कराया परन्तु राजाके अर्धासनपे बैठी हुई अपनी पूर्व प्रियाको देखकर वानर नाचता हुआ बंद होगया और उसकी आँखोंमेंसे टपाटप अश्रु पड़ने लगे । 'मैंदारी' ने बहुतही ताड़ना तर्जना की परन्तु वह ज्यूंसे त्यूं न हुआ । इस प्रकार रुदन करते हुवे वानरको उस सुन्दरीने पैछान लिया और विचार करने लगी कि ओहो यह तो वही वानर है, जिसके साथ मैं पूर्वजन्म वत अरण्यमें क्रीडा किया करती थी, अहो ! अब इस विचारेकी क्या दशा होगई। यह अपनी इस दुर्दशाको तथा मेरी उन्नत दशाको देख और मेरे निषेध करनेपर भी उस तालावमें दूसरे दफेके पतनको याद करके रोता है, मला अब रोनेसे क्या बन सकता है ? । रामीने उठके एकान्तमें उस वानरको समझाया और कहा कि हे कपे! जिस वक्त जैस्य समय आवे जीक्को वैसाही समतापूर्वक भोमना चाहिये, अब पसाचाप करनेसे कुछ नहीं होसकता, अपलो मले