________________ चन्द्राख्यगुरुणं समीपे प्राप्ता-तद प्रमुदितं-हृष्टंचितं यस्याः सा तथा विधा सती भक्तया तस्य गुरोः पादो-चरणौ नमति-- रास-पासे पोसहसालमें / बेठा गुरु गुणवंत / . कहे मयणा दिये देशना / आवो सुणिये कन्त / नरनारी बेहु जिणा / आव्या गुरुने पाय / विधि पूर्वक वन्दन करी / बेठा बेसण ठाय / अब ढूँढकजी कि तस्कर वृतिको देखिये / बहुतसे शब्दों और भावार्थ में तो फारफेर किया है पर मूल पाठ किस चालाकिसे उछाया है। ढूंढक चोथमलजीका बनाया हुआ श्रीपाल चरित्रके पृष्ट 8 में मन्दिरका अधिकार निकाल केवल मुनिकाढूँढक-प्रातः हुई दीनकर प्रगटायो / भाग्य उदय मुनि आया श्रीपाल निज पत्नी संगजी / चरणे शिश नमाया / 65 - देह देशना मुनिवर बोले / मैना सुन्दर ताइ.. पुरुषरत्न यह कोन संग / तू किस विपताके माई / 66 उपर जो प्राकृत संस्कृत और रास में भगवान् शुषभदेवके मन्दिरमें मयणा सुन्दरी अपने पतिदेव के साथ प्रवेशकर भक्तिपूर्वक सरस वचनोंसे जिनेन्द्रदेव का चैत्यवन्दन स्तुति करी थी उन सब मूलपाठको तस्कर चौथमलजीने उडा दीया है तो मन्दिरजीमें पाठ दिन अठाई महोत्सव नौवे दिन वडी भारी पूजाके लिये तो कहना ही क्या 1 देखिये मूलका पाठ-- प्राकृत-आसोअसे अठुमि दिणाश्रो / श्रारंभि अणमेयस्स / भट्टविह पूय पूव्वं / आयामें कुणह अदिणे / 217