________________ विद्याधर को नाथ आप, तस वेणमाला पटनार / चार पुत्र पुनवंता भूपके, इन्द्रतणे उन्हियार हो // 233 // इच्छीत पुत्री हुई एक पुनि, रैन मंजूषा नाम / रूपकला अधिक है जिसमें, अंग उपांग अभिराम हो॥२३४॥ वर योग नृप कन्या जानी, वर कि करे तलास / घर बर दोनों मिले दीपता, पूर्ण पुन्य हो तास हो // 335 // एक दिन नृप श्री मुनिराजसे, पुच्छाकर नमस्कार / रैनमैंजूषा मुझ पुत्रीका, बने कौन भरतार // 236 // मुनि कहे तुझ पट्ट हस्ति जब, विकल होय भग जावे / पति बनेगा वही सुत्ताका, जो गजमद हटावे हो // 237 // मुनि वचन सुन राजाके तब, हुवाचित विश्वास / रखो निग्गह अनुचर हाथीकी, हुकम दीया प्रकश हो // 23 // अल्पदिनो में वह पट हाथी, छक्यो मदनके भाई। हुवा कोलाहल शहेर बिचमें, एसी धूम मचाई हो // 239 // चला समुद्र तटगज आया, श्रीपाल उसवार | नवपद स्मर तुरत उस गजको, दिनों मदन उतार // 24 // खबर पाय भूपति आया, श्रीपालके पास / पुर जन सब देख इम बोले, देव पुरुष थे खास // 241 // कहे नृपति सुनो कुमरजी, मुझे कहा मुनिराज / कन्या का वर बने वहीजो, बस लावे गजराज // 242 // सो आप कृपा कर पुत्री, मेरीको वरलीजे; विलम्ब करें नहीं शीघ्र चलो मुझ, घरको पावन कीजे // 243 //