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श्रीमाल से जांगल देश भी बहुत पास होनेसे कई श्रीमाली उस देश में भी जा वसे, और कालांतर से 'जांगला (जांगडा पोरवाड) कहाते हैं। ये लोक मुख्यतः जैन हैं। इस शाखा के चोवीस गोत्र माने जाते हैं यथाः
चौधरी, काला, धनगर, रतनाव, धनोत, मजावर्या, डबकरा, भादलिया, कामलिया, शेठिया, उधिया, वेखंड, भूत, फरक्या, भलेपरिया, मंदोवरिया, मुनिया, घांटिआ, गलिया, नवेपर्या, दानगड, महता, खरडिया, और भेसोता।
- इसी समय पद्मावती नगर भी उन्नतावस्था को पहुंचा हुआ था। वहांपर श्रीमालियों का जा बसना असंभव नहीं। वहां रहनेवाले पद्मावती कहाये ।
पद्मावती और जांगडा पोरवाडों के संबंध के अधिक प्रमाण अभी उपलब्ध न होनेसे विस्तार पूर्वक लिख नहीं सकते परंतु इस मे संदेह नहीं कि, पोरवाड नाम धरानेवाली भिन्न भिन्न ज्ञातियां एकही मूल वृक्षकी शाखाएं हैं, और इस वृक्षकी जड़ें श्रीमाल नगर में बहुत गहरी जमी हुई हैं। पोरवाड़ ज्ञाति का महास्थान श्रीमाल नगर ही है । जो भी वे चक्रवर्ती पुरुरवा के पूर्व से भेजे हुए श्रीमाल के रक्षणकर्ता योद्धा थे और जो भी उनका खास निवास पूर्व में पुरुरवा के राज्य में था तो भी व श्रीमाल में आने के पश्चात् ही "प्राग्वाट" (पोरवाड-पोरवाल) कहाये । श्रीमाल में आने के पहिले एक प्रमाण से वे पुरुरवा के