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पोरवाडों का श्रीमाल परित्याग ।
श्रीमाल पुराण में कहा है कि विक्रम सं. १२०३ की वैशाक सुदि ८ को देवी लक्ष्मी गुजरात खंड में पाटण नगर को जावेगी, और लक्ष्मी के गमन के पश्चात् श्रीमाल नगर शून्य होगा, तथा हे राजा !! इस के पीछे यह नगर “भिन्नमाल" कहावेगा। लक्ष्मीजी जावेगी अर्थात् श्रीमाली लोक निर्धन होकर स्थान भ्रष्ट होंगे । (पृ. ६६८)
“सोहंकुलरत्न पट्टावली में लिखा है कि “ सं. १३१३ में राव कान्हडजी ने पुराना खेडा भिन्नमाल बसाया"
लोकागच्छ की पट्टावलीपर से बुद्धिप्रकाश में प्रकाशित हुआ है कि " संवत ११७५ पीछे मारवाड में द्वादश वर्षीय दुष्काल हुआ।
बुद्धिप्रकाश के सन १८६८ के पृष्ट २४६ में निम्नोक्त चौपाई है:
" अग्यार से छोतर नो दुष्काल, भांगी पडयूं ते. पुर भिन्नमाल, राजा हतो पाटण सिद्धराज आवी वस्यो त्यां सघलो समाज."