________________
४४
.
इतिहास लिखाजावे तो प्रथम तथा अग्रस्थान पोरवाडों को ही दिया जावेगा।
एवंच मान सन्मान में, राजकाज में शोर्य में, धेर्य में इन का बहुत उच्च स्थान था। अणहिलपुरपट्टण में राजा भीमदेव, कर्णदेव के समय तो इन लोगों की इतनी चलती थी कि इन्हीं के किये सब कार्य होते थे।
। विमल चरित्र में एक जगह लिखा है कि, श्री अंबिका देवीने पोरवाडों को सात दुर्ग दिये अर्थात् उन्हें सात सग्दुणों के धारण कर्ता बनाये:
सप्तदुर्ग प्रदानेन, गुण सप्तक रोपणात् । पुट सप्तक वंतोऽमि प्राग्वाट इति विश्रताः ॥ ६५ ॥ आद्यं प्रतिक्षा निर्वाहि, द्वितियं प्रकृति स्थिराः । त्रितियं प्रोढ वचनं, चतुःप्रज्ञा प्रकर्षवान् ॥ ६९ ॥ पंचमंच प्रपंचज्ञः, शष्ठं प्रबल मानसम् । सप्तमं प्रभुताकांक्षी, प्राग्वाटे पुट सप्तकम् ॥ ६७ ॥
(१) प्रतिज्ञा निर्वाह (२) स्थिर प्रकृति (३) प्रौढ वचनी (४) बुद्धिमान (५) प्रपंच के ज्ञाता (६) मन के दृढ (७) महत्वाकांक्षी।
परंतु थोडा ही समय व्यतीत होने के पश्चात पोरवाडों में भद होने लगा। प्रथम इनमें तीन भेद हुए। [१] पोरवाड [२] सोरठ (सौराष्ट्र ) में गये वह सोरठिया पोरवाड कहाये,