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शिला लेख - कामद्रा ग्राम - सिरोही राज्य. संवत १०९९.
“ॐ । श्रीभिन्नमाल निर्यातः प्राग्वाट वणिजावर : श्रीपति वि लक्ष्मा युग्गो ल ( च्छ्रीं ) राजपूजितः ॥ अकारो गुण रत्नानां बन्धु पद्म दिवाकरः ज्जुजकस्तस्य पुत्र स्यात नम्म राम्मै ततौ परौ ॥ जज्जुं सुत गुणोद्य वामनेन भसाद्भयं । दृष्टवा चक्रे गृहं जैन मुक्त्यै विश्व मनेोहरं ॥ संवत १०९१ • सपुने.
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पोरवाडों के कुलगुरु (गोर) श्रीमाली ब्राह्मण हैं । यह भी पोरवाड ज्ञाति की श्रीमालियों से ऐक्यता का तथा उनका महाजन होने के बाद का मूलस्थान श्रीमाल होने का एक सबल प्रमाण है ।
आजकल भी भिन्नमाल के आसपास के प्रदेश में पोरवाडों की अधिक वस्ती है । उक्त सब बातें यही सिद्ध करती है कि श्रीमाली तथा पोरवाडों का बहुत समय तक घनिष्ट संबंध रहा है । इन दोनों में उस समय ऐक्य होना स्वाभाविक है ! जब ज्ञाति बंधन बहुत संकुचित और जड हुए तब ये दोनों ज्ञातियां पृथक भले ही मानी गई हों परंतु पहिले इन लोगों में किसी प्रकार का भेदभाव न था । श्रीमालियों से तो ठीक ही किन्तु पोरवाड ज्ञाति के प्रसिद्ध सेनापति वस्तुपाल की दूसरी स्त्री सुहड़ा देवी पत्तन के रहने वाले मोढ जाति के महाजन ठाकुर ( ठक्कुर) जाल्हण के पुत्र ठकुर आसाकी पुत्री थी । इस संबंध का शिलालेख, वस्तुपाल तेजपालने आबूपर बनवाए