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नगर में रहने को श्रीदेवीने भिन्न भिन्न तीर्थों से चार वेद के विद्वान संख्याबंध ब्राम्हण बुलाए । अर्थात् वहां पर लक्ष्मीवनों की वस्ती होने से उदरभरणार्थ चारों ओर से ब्राम्हण आए । और भी कहा है लक्ष्मीदेवीने धारण किये हुए हार में ब्राम्हणों का प्रतिबिंब देखकर हर्ष से लक्ष्मी के नेत्र अश्रुमय हुए । उस हार के अष्टदल कमल में पडे हुए ब्राम्हणों के प्रतिबिंब जीवित हो बाहर निकले । वे रेशमी वस्त्र रत्न, सुवर्ण और चंदन से सुशोभित थे । उन्होंने अब अपने नामकरण आदि की प्रार्थना की तो लक्ष्मीदेवी बोली कि, तुम सुवर्णपद्मों से उत्पन्न हुइ हो अतएव सुवर्णकार ( सुनार ) का धन्दा करके इस नगर में सोनी नाम से रहो। इस प्रकार आठ हजार चौसठ सोनी उत्पन्न हुए। फिर आगे कहा है । ब्राह्मणों के धन धान्य के रक्षण की चिंता से लक्ष्मीदेवीने अपनी जानु तरफ देखा और उसमें से धवल वस्त्र परिधान करने वाले, उम्बर का दंड तथा यज्ञोपवित धारण किये हुए नब्बे हजार वणिक पुत्र उत्पन्न हुए । उन्होंने अपने लिये काम की प्रार्थना करने पर श्रीविष्णु भगवान बोले कि :
निप्राणामाज्ञया नित्यं वर्तितव्यमशेषतः ॥ २० ॥ पशुपाल्यं कृषिवत्ता वाणिज्यंचेतिवः क्रियाः । अध्येषति द्विजा वेदान्यजिष्यंति समाधिना ॥ २१ ॥ तपस्यति महात्मानो यजिष्यंति समाधिना । गृहभारं समारोप्य युष्मासु प्रवोणेषुच ॥ २२ ॥