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बकुलादेवी वणिक कन्या थी । राजा भीमदेव वि. सं. १०८८ तक जीवित था। इस से सिद्ध होता है कि प्रचलित ज्ञातियां जो मि. वि. सं. पहिले चारसों पानसो वर्ष के लगभग निर्माण हुई थी तोभी आज कल जैसा एकांतिक वैवाहिक प्रबंध वि. सं. १०८८ तक प्रचलित नहीं हुआ था । अस्तु, ज्ञाति निबंध के सबंध में इतना विवरण करने के पश्चात अब मुख्य विषय से संबंध रखनेवाली वणिक ज्ञातियों का विचार करना आवश्यक है।
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वाणिक ज्ञातियां
" वणिक " शब्द कुल सूचक नहीं है; परंतु व्यवसाय सूचक अवश्य है । व्यापार के लिये संस्कृत शब्द “वाणिज्य" है । वाणिज्य करने वाला “ वणिकाः " कहलाता है । वणिका शब्द में का अंत्यवर्ण 'क्' प्राकृत व्याकरण के निययानुसार उञ्चार में दबाकर प्राकृत भाषि “ वणिआ" ऐसा उच्चार करते हैं। उत्तर हिंदुस्थान तथा बंगाल प्रांत में 'व' की जगह 'ब' का तथा 'ण' की जगह 'न' का उच्चारण होता है । एवं " वणिआ" (विकृत 'वनिआ') ऐसा मूल ' वणिकाः' शब्द का रुपांतर हुआ। व्यापार व्यवसाई 'बनिया' कहाते हैं। जैसे मास्तर शब्द ज्ञाति सूचक नहीं