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मत्थे मार देते हैं । सत्यतः हमारा जाति भेद हमारे बुढांवों के उन्मत्त स्वभाव जनित दोष से स्वाभाविक उत्पन्न हुआ है । " ज्ञाति ” शब्द " ज्ञा ' धातु से बना है जिसका अर्थ जानना " है । परिचित ( जाने हुए ) मनुष्यों का समूह वही ज्ञाति । पहिले एक वंश के, एक गोत्र प्रवर के, जिनको सूतक लगता हो वैसे और जो दाय भाग के हकदार हों वे एक जाति वा ज्ञाति के कहलाते । ब्राह्मण मात्र की ज्ञाति; क्षत्रिय मात्र की क्षत्रिय, वैश्य मात्र की वैश्य और शूद्र मात्र की शूद्र ज्ञाति जानी जाती थी, परन्तु वर्णसंकरता का खीचडा होजाने से " ज्ञाति” शब्द नूतन निर्मित नये समूहों को लगाया गया । एक गाम में रहने के कारण, एकही धन्दा करने के कारण, निकट वर्तिस्थानों में * वास करने के कारण, एक धर्मावलंबी होने के कारण ऐसे $ विविध कारणों से लोगों के समूह बन जाते हैं । ऐसे ज्ञाति निर्बंध कब से निर्माण हुए ? किन
* मोढेरा स्थानके ओसा नगरी के ओसवाल. के मेवाडा. महाराष्ट्र के महाराष्ट्रीय ( मरहटा )
$ सर्व धर्मेषु तस्मातु यौन पिंडो विधीयते । स्थापित स्थूल वृत्तीनां ज्ञातिभेद कलौ युगे ॥ ॥ संकरत्व निषध्याय वर्तते शिष्ठ संग्रहात अज्ञातोप्तत्ति भावना क्षूयस्ते सति सोन्वयः ॥ २ ॥ सांकर व्यवहारात्रमास्तु तस्मात स्थितिः कृता । स्थान स्थापित भेदेन स्थान स्थापक नामभिः ॥ ३ ॥ समवायो भवेज्ज्ञातिः सज्ज्ञाति स्यात्कुली युगे ।
( पद्म पुराणांतर्गत - एकलिंग महात्म्य )
रहिवासि मोढ, श्रीमाल नगर के श्रीमाली, प्राग्वार के पोरवाड गौड के श्री गौड. मेवाड