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सोमेश्वरादि कवियों को इनोंने भूमि आदि दान द्वारा पुष्कल आजीविका कर दी जिस की कृतज्ञता प्रकाशित करते हुए सोमेश्वरने कहा है:
' सूत्रे वृत्ति कृता पूर्व दुर्ग सिंहन धीयता । विसुत्रेतु कृता तेषां वस्तुपालन मंत्रिणा
"
वस्तुपाल सोमेश्वर को बहुत आदर करता था :
एक समय वस्तुपाल धोलका से स्तंभपुर गया। जब वह हां पहुंचा तो उस समय कुछ घोडे नावों में से आये हुए थे 1 उसने उस समय उन घोडों की ओर तथा समुद्र की ओर..
देखकर कहा:
प्रावृट काले पयो राशिः कथं गर्जित वर्जितः ?
अर्थात्-वर्षा ऋतु में यह समुद्र बिना गर्जना के क्यों हैं ? सोमेश्वरने उत्तर दिया:
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श्रतः सुप्त जगन्नाथ निद्राभंग भया दिव
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वस्तुपालये प्रसन्न होकर उसी समय वे अमुल्य १६ घोडे सोमेश्वर को भेट दिये ।
एक समय कइएक कवि बैठे थे और परस्पर में मनोहर संभाषण कर रहे थे कि उस समय वस्तुपालने एक समस्या दी ।