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वह फिरसे धनाड्य हुआ । वि. सं. ८०२ में अणहिल नामक पुरुषने बताई हुई जगह पर वनराज चावड़ाने 'अणहिलपुर पट्टण ' बसाया । वहां वनराज श्रेष्ठ निनग और उसका पुत्र लहर को ले आया । वहां इनको विशेष वैभव सुख और कीर्ति प्राप्त हुई । निनग को वनराज पिता समान मानता था । लहर को शूरवीर देखकर बनराज ने अपना सेनापति बनाया । और " खंडस्थल नामक गाम भेंट दिया । वह नीतिझ देवता और साधुओं का भक्त, दानशील, दयालु और जिन धर्म का ज्ञाता था । उसका पुत्र महत्तमवीर मूलनरेंद्र [ चालुक्य राजा मूल ] की सेवा में रहता था । वह बुद्धिमान, उदार और दानी था । वह वि. सं. १०८५ में साधु हुआ । उसका जैन धर्मनिष्ठ ज्येष्ठ पुत्र " नेढ ” मंत्री बना और दूसरा विमल दंडाधिपति [ दंड नायक ] हुआ । इसके आगे नेढ की वंशावली है ।
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* श्री श्रीमाल कुलोत्य निर्मलतर प्राम्वार वंशांबरे । भ्राजच्छीत करोपमो गुणनिधिः श्री निन्नकाख्यां गृही; आसिद्ध वस्त समस्त पाप निचयो विज्ञो वरिष्ठाशयः धन्या (न्यो ) धर्म निबद्ध सु ( शु ) द्धधि (ष) पण: स्वाम्नाय लोकाप्रणीः ॥ २ ॥ सकल नय विधिज्ञो भावतो देवसाधु प्रतिदिन मति भक्को दानशीलो दयालुः. विदित जिनम तोलं धर्म कर्मानुरक्तां 'लहर' इति सुपुत्र स्त्रस्य जातः पवित्रः ॥ ३ ॥ प्रावाजिजित दर्पितारि निचयो यो जैन मागपर - माईत्य सुविशुद्ध मन्वय वश प्राप्तं समारात्य ( ध्य) च, श्रीमान मूल नरेन्द्र सन्निधि सुधा निस्कंद संसेकित प्रज्ञा पात्रत्रमुदात्त दान चिरतस्तत्सूनुरासीद (व्द) र ॥ ४ ॥ निज कुल कमल दिवाकर कला सकलार्थि सायं कलातरु, श्रीमद्वीर महत्तम इतियः ख्यातः क्षमावलये ॥ ५ ॥ श्री मन्नेढो धि धनो धरिचेता आसीन्मत्री जैन धर्मै कनिष्ठः श्रद्यः पुत्रस्तस्य मानी महेच्छ त्यागी भोगी बन्धु पद्माकरेंदु ॥ ६ ॥ द्वितीय को : द्वैत मतावलवी दंडाधिपः श्री विमलो बभूवः येनेदमुचैर्भवसिंधु सेतु कल्पं विनिमी पितमावश्म ॥ ७ ॥