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भोलेभाले पोरवाडों को मनमाने गोत्र बता देते हैं, और उनसे अपने पेटकी भेट लेकर नोदो ग्यारह होजाते हैं । इधर भेंट देने वाला ब्रह्म वाक्यं समझकर अपने को कोई चोहान कोई रायठोर, कोई फूल मगेरा समझकर फूले नहीं समाते पोरवाडों का क्षत्रियत्व तो इतिहास सप्रमाण सिद्ध करता है परंतु इनों के गोत्रका कोई सप्रणाम इतिहास अभी उपलब्ध नहीं हुआ है। ऊपर कहे अनुसार जैन साधु प्रणित गोत्रों का उल्लेख कुछ लेखों में उपलब्ध हुआ है वे पाठकों के अवलोकनार्थ दिये जाते हैं।
१ ठकुर गोत्र । नगर (मारवाड ) श्री भीडभंजन महादेव के मंदिर में सूर्य के दोनों तरफ श्री मूर्तियों की चौकीपर बांये तरफ का लेख। . १ ॥ॐ॥ संवत १२९२ वर्षे आषाढ सुदि ७ रवी श्री
नारदमुनि विनिवेशीते श्री नागरवर महास्थाने सं.
९०८२ वर्षे२ अति वर्षाकाल वशादति पुराणं तयाच आकस्मिक श्री
जयादित्य देवीय महा प्रसाद पत्तन विनष्टायां श्री रत्रा देवी मूर्तो। पश्चात् श्रीमत् पत्तन वास्तव्य प्राग्वाट ठ० श्री चंडपात्मज ठ० श्री चंडप्रसादांगज ठ० श्री सोमतनुज ठ० श्री आसाराज नन्द ।