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क्या राझ है मुनिजी की इस विराट साहित्ययात्रा का ? अपने पूर्वाश्रममें मुनिजी भावनगर 'बी.एड.कोलेज में प्रोफ़ेसर थे, 21 साल की उम्र में 'हायर सेकंडरी' में अध्यापक हो गए, 24 वे साल में तो कोलेज के प्रोफ़ेसर, यूनिवर्सिटीमें पेपर-सेटर, परीक्षक, अभ्यासक्रम-घडतर-समिति के सभ्य हो गए, M.Com.,M.Ed.,Ph.D. और डिप्लोमा रेडियो एन्जिनियर की डिग्री को प्राप्त इस मुनिजी को धर्म भी विरासत में मिला था | मुनिजी के भैया, परदादी, बड़ेबुआ, चाचाजी, पितराई बहने आदि पहले से जैन-दीक्षा अंगीकार कर चुके थे |
ऐसी धर्म-विरासत, कालेज की उच्चतम डीग्रीयाँ, तीर्थंकर परमात्मा की असीम-कृपा, माँ पद्मावती का सांनिध्य और प्रतिदिन आठ-नव घंटे के अपने पुरुषार्थ से आज दीपरत्नसागरजी इस मुकाम पर पहुंचे है|
दीपरत्नसागरकी सफलताका दूसरा राझ है 'जप' मुनिजी नित्य त्रिकाल 108- नवकार और अन्य जाप करते है | मुनिजी ने पद्मावतीजी के 31 लाख, उवसग्गहरं के 21 लाख, लोगस्ससूत्रके 3 लाख, वर्धमानविद्याके 4 लाख, 21 दिन सरस्वतीका अनुष्ठान तप सहित दो बार, 21 साल तक हर दिवालीके तीन दिनोमें 18000 विद्यामंत्र की आराधना, चिंतामणिमंत्र 1 लाख आदि अनेक जप किये है | तथा प्रत्येक दिवाली की रात्रि और मौन एकादशी की पूर्वरात्रिमे रात्रि के पोने दो बजे से सुबह आठ बजे तक कल्याणक की सलंग आराधना करते है |
मुनिजी ने विशुद्ध भगवद्भक्ति के लिए जिनवचनरूप आगमशास्त्र को अपना जीवनमंत्र बनाकर 20 साल एकांतवास जैसे गुझारे है | ज्ञान के साथ क्रिया और तप-त्यागकी महत्ता का स्वीकार और पालन करते हुए वे अपना संयम जीवन व्यतीत कर रहे है | ऐसे संयमजीवन की फलश्रुति है ये पांच भाषाओं के माध्यम से हुई 1,03,130 पृष्ठोमें विस्तरित 585 प्रकाशनों की विराट साहित्य-यात्रा.
संपर्क: मुनि दीपरत्नसागरजी [M.Com. M.Ed. Ph.D. श्रुतमहर्षि] 'जैन देरासर, “पार्श्वविहार" फ़ोरेस्ट रेस्ट हाउस के सामने,
| Post: ठेबा [361120], Dis. जामनगर [गुजरात] Mobile:+91-982596739 Email: Jainmunideepratnasagar@gmail.com
ये सभी प्रकाशन इंटरनेट पर भी उपलब्ध है www.jainelibrary.org
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