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नमो नमो निम्मलदंसणस्स
दीपरत्नसागर की 555 साहित्य-कृतियाँ
दीपरत्नसागरजी का प्रिन्टेड या नेट-पब्लिश्ड साहित्य इंटरनेट की परिभाषा में 78,00,000 KB से भी ज्यादा हो चूका है |
क्या राझ है मुनिजी की इस विराट साहित्ययात्रा का ? अपने पूर्वाश्रममें मुनिजी भावनगर 'बी.एड. कोलेज' में प्रोफ़ेसर थे, 'जामनगर' के निवासी थे, 'दीपकभाई ठक्कर' नाम था | 21 साल की उम्र में 'हायर - सेकंडरी' में अध्यापक हो गए, 24 वे साल में तो कोलेज के प्रोफ़ेसर, यूनिवर्सिटीमें पेपर-सेटर, परीक्षक, अभ्यासक्रमसमिति के सभ्य हो गए, M.Com.,M.Ed.,Ph. D. की डिग्री को प्राप्त इस मुनिजी को धर्म भी विरासत में मिला था | मुनिजी के परदादी, बड़ेबुआ, चाचाजी, पितराई बहने, भैया आदि सभी पहले से ही जैन- दीक्षा अंगीकार कर चुके थे | ऐसी धर्म-विरासत, कालॅज की उच्चतम डीग्रीयाँ, तीर्थंकरप्रभू की असीम-कृपा, माँ पद्मावती का सांनिध्य और प्रतिदिन आठ-नव घंटे के अपने पुरुषार्थ से आज दीपरत्नसागरजी इस मुकाम पर पहुंचे है |
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दीपरत्नसागरकी सफलताका दूसरा राझ है 'जप' मुनिजी नित्य त्रिकाल 108- नवकार और अन्य जाप करते है । मुनिजी ने अबतक पद्मावतीजीके 27-लाख, उवसग्गहरंके 18 लाख लोगस्ससूत्रके 3 लाख, वर्धमानविद्याके 4-लाख, 21 दिन सरस्वतीका अनुष्ठान तपके साथ दो बार, 21 साल तक हर दिवालीके तीन दिनोमें 18000 विद्यामंत्र की आराधना, चिंतामणिमंत्र 1 लाख आदि अनेक जप किये है |
मुनिजी ने विशुद्ध भगवद्भक्ति के लिए जिनवचनरूप आगमशास्त्र को अपना जीवनमंत्र बनाकर 20 साल एकांतवास जैसे गुझारे है। ज्ञान के साथ क्रिया और तप-त्यागकी महत्ता का स्वीकार और पालन करते वे अपना संयम जीवन व्यतीत कर रहे है | .......... वन्दना सह... Total Books 555 [1,00,013 Pages]
हुए
Muni Deepratnasagar's 555
[5] Publications on 03/07/2015