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गुरु-शिष्य
लोगों को! आपके गुरु ने यदि विवाह कर लिया हो, अरे, विवाह नहीं किया हो, परंतु किसीको ज़रा-सा छेड़ा भी हो तो वहाँ आप सब उसे मारते रहो। इन खोजा लोगों के गुरु ने तो विवाह किया एक यूरोपिनय लेडी से! उन सभी लोगों ने उत्सव मनाया कि अपने गुरु एक यूरोपियन लेडी से शादी कर रहे हैं! उसे शिष्य कहते हैं। गुरु की कमी नहीं निकालते। सबकी कमी निकालना, परंतु गुरु की कमी नहीं निकालनी चाहिए, वह तो बहुत बड़ा जोखिम है। नहीं तो गुरु बनाना ही नहीं। ___मैं गुरु की आराधना करने को नहीं कहता हूँ, परंतु उनकी विराधना मत करना। और यदि आराधना करे तो काम ही हो जाए, परंतु उतनी अधिक आराधना करने की शक्ति मनुष्यों में होती नहीं। मैं क्या कहता हूँ कि पागल को गुरु बनाना, बिल्कुल पागल को बनाना, परंतु पूरी ज़िन्दगी उसे 'सिन्सियर' रहो तो आपका कल्याण हो जाएगा। बिल्कुल पागल गुरु के प्रति सिन्सियर रहने से आपके सभी कषाय खत्म हो जाएँगे! परंतु उतना समझ में आना चाहिए न! उतनी मति पहुँचनी चाहिए न! इसीलिए ही तो आपके लिए 'पत्थर' के देवता स्थापित किए कि यह प्रजा ऐसी है, इसलिए पत्थर के रखो ताकि कमी नहीं निकालें। तब कहते हैं, 'नहीं, पत्थर में भी कमी निकालते हैं कि यह श्रृंगार ठीक नहीं है !' यह प्रजा तो बहुत विचारक है ! बहुत विचारक, वे गुरु के दोष निकालें वैसे हैं। खुद के दोष निकालने तो कहाँ रहे, परंतु गुरु का ही दोष निकालते हैं! इतनी अधिक तो उनकी एलर्टनेस (जागरुकता) है !
हम गारन्टी देते हैं कि किसी भी पागल को गुरु बना लो और यदि पूरी ज़िन्दगी उसे निभाओ तो मोक्ष तीन जन्मों में हो जाए ऐसा है। परंतु गुरु जीवित होने चाहिए। इसीलिए तो इन लोगों को यह नहीं पुसाया और मूर्ति रखी गई।
___ इसलिए मेरा क्या कहना है कि खुद का डिसाइड किया हुआ ऐसे मत तोड़ दो। गुरु बनाने, वह कोई जैसी-तैसी बात नहीं है। नहीं तो गुरु बनाओ तो अच्छी तरह से जाँच-पड़ताल करके बनाओ।