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गुरु-शिष्य
के लोग! इसलिए फिर अधोगति में जाते हैं । अभी गुरु परफेक्ट नहीं होते । अभी परफेक्ट गुरु कहाँ से लाएँगे? ये गुरु तो कैसे हैं? कलियुग के गुरु !
गुरु से मानो कि भूलचूक हो जाए फिर भी तू यदि उनका शिष्य है तो अब छोड़ना मत। क्योंकि दूसरा सबकुछ कर्म का उदय होता है। ऐसा नहीं समझ में आता तुझे? तू किसलिए दूसरा कुछ देखता है? उनके पद को तू नमस्कार कर न! वे जो करें, वह तुझे नहीं देखना है। हाँ, उनका उदय आया है, इसलिए वे भोग रहे हैं । उसमें तुझे क्या लेना-देना? तुझे उनका देखने की ज़रूरत क्या है? उनके पेट में दर्द होता हो तो गुरुपन चला गया? उन्हें एक दिन उल्टी हुई तो उनका गुरुपन चला गया? आप लोगों को कर्म के उदय होते हैं तो उन्हें कर्म के उदय नहीं होते होंगे? आपको कैसा लगता है?
प्रश्नकर्ता : ठीक है।
दादाश्री : (गुरु के) पेट में दर्द हो रहा हो तो सभी शिष्यों को चले जाना चाहिए? अभी मुझे पेट में दर्द हो तो आप सब चले जाओगे? यानी अपराध में मत पड़ना। विरोधी नहीं बनना । जिन्हें आप पूजते थे, जिनके आप फॉलोअर्स थे, उनके ही आप विरोधी बन गए? तो आपकी क्या दशा होगी ? वह गुरुपद नहीं जाना चाहिए? उन्हें दूसरी दृष्टि से मत देखना । परंतु आज तो कितने ही लोग दूसरी दृष्टि से नहीं देखते हैं क्या?
पूज्यता नहीं टूटे, वही सार
ऐसा है न, चालीस वर्षों से जो अपने गुरु हों, और उन गुरु को ऐसा हो, तो भी अपने में बदलाव नहीं होने देना चाहिए। हम वही दृष्टि रखें, जिस दृष्टि से पहले देखे थे, वही दृष्टि रखें, वर्ना यह तो भयंकर अपराध कहलाता है। हम तो कहते हैं कि गुरु बनाओ तो सोच-समझकर बनाना। फिर पागलबावरे निकलें, तो भी तुझे उनका पागलपन नहीं देखना है । जिस दिन तूने गुरु बनाए थे, फिर वैसे ही गुरु को देखना है । मैं तो उन्हें पूजने के बाद, वे मारेकरें तो भी मैं उनकी पूजा नहीं छोडूं । क्योंकि 'मैंने जिन्हें देखा था, वे अलग थे और आज यह कोई प्रकृति के वश में होकर अलग वर्तन हो रहा है, परंतु खुद की इच्छा के विरुद्ध है यह', ऐसा समझ लो तुरंत । हमने एक बार हीरा
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