________________
गुरु-शिष्य
तेरे गुरु जो भी करेंगे न, उसके लिए हम तेरा सहारा बनेंगे, तुझे बरबाद नहीं होने देंगे। पर अब वहाँ पर कुछ भी भिजवाना मत, प्रेम आए तो भेजना। तुझे प्रेम आए, उल्लास आए तो भेजना। परंतु भय के मारे मत भेजना। नहीं तो वह तो अधिक उछलेगा। तू डरना मत। तेरे गुरु का उल्टा चितवन मत करना। क्योंकि तेरी भूल से ये गुरु लेकर गए हैं। कुछ उनकी भूल से लेकर नहीं गए हैं ये।'
__उसकी खुद की भूल से ही ले गए हैं न! उसे लालच होगा कुछ तभी न! कोई लालच होगा तभी ये गुरु बनाए थे न! तभी पैसे देगा न! यानी लालच से ही ठगे गए हैं और ये सारे लोग हाथ में आया हुआ फिर छोड़ते नहीं हैं। दूषमकाल के लोग, उन्हें खुद की अधोगति होगी या क्या होगा, उसकी कुछ पड़ी ही नहीं है। शिकार हाथ में आना चाहिए। पर वे तो क्या कहते हैं? 'हमारे भगत हैं।' वैसा कहते हैं न? 'शिकार' नहीं कहते उतना अच्छा है और वे शिकारी लोग तो 'शिकार' कहते हैं।
फिर मैंने उसे कहा, 'तूने गुरु के नाम पर कुछ किया था?' तब उसने कहा, 'हाँ, उनका जो फोटो पूजता था, वह फिर तापी नदी में डाल आया। ऐसे बहुत परेशान किया, इसलिए मुझे चिढ़ हो गई। इसलिए डाल आया।' 'अरे पर तूने उसे पूजा किसलिए? पूजा की तो फिर तापी में किसलिए डाल आया? गुरु ने तुझे ऐसा नहीं कहा था कि तू पूजकर तापी में डाल आना। नहीं तो पूजता ही नहीं पहले से। पूजा है इसलिए जोखिमदारी तेरी हुई। यह तो तूने गलत किया। कल तक भजना कर रहा था और दूसरे दिन डाल दिया पानी में! भजनेवाला तू और उखाड़नेवाला भी तू। खुद ही भजनेवाला और खुद ही उखाड़नेवाला! यह गुनाह है या नहीं? तो फिर भजता किसलिए था? यदि उखाड़ना हुआ तो विधिपूर्वक उखाड़ो। ऐसा नहीं चलेगा। क्योंकि जिस फोटो की आज तक पूजा कर रहा था, उसे कल नदी में विसर्जित कर दें, तो वह हिंसा हुई कहलाएगी।' हम समझें कि यह भगवान का फोटो है और फिर हम यदि डूबो दें, तो अपनी भूल है। नहीं जानते हों, अनजान हों तो हर्ज नहीं है।