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गुरु-शिष्य
कि खुद सभी चीज़ों का पालन करे, इसलिए सामनेवाले से सहज ही पाल लिया जाता है। यह आपकी समझ में आता है क्या?
प्रश्नकर्ता : गुरु पालन करें, तब अपने से पाल ही लिया जाता है, वह मेरे दिमाग़ में नहीं उतरता है।
दादाश्री : तब तो उससे तो किताबें अच्छी। किताबें ऐसा ही कहती हैं न? 'ऐसा करो, वैसा करो, फलाँ करो।' तो उन जीवित गुरु से तो किताबें अच्छी। जीवित के तो फिर पैर छूने पड़ते हैं ऐसे!
प्रश्नकर्ता : उससे नम्रता का अभ्यास तो होता है न?
दादाश्री : उस नम्रता का क्या करना है? जहाँ हमें कुछ मिले नहीं, अपनी पूरी ज़िन्दगी वहीं के वहीं निकल जाए तो भी अपना कपड़ा भीगे नहीं तो वह पानी फिर किस काम का? इसलिए यह सारा यूज़लेस (व्यर्थ), वेस्ट ऑफ टाइम एन्ड एनर्जी (समय और शक्ति का दुर्व्यय) है!
आपकी समझ में नहीं आया? मैं आपसे कहूँ कि 'यह आप छोड दो' और आपसे वह नहीं छूटे तो समझना कि मुझमें दोष है। आपसे नहीं छूटे तो आपको मुझमें दोष निकालना चाहिए। आपके सभी प्रयत्न करने के बाद भी नहीं छूटे तो उसका कारण क्या है? मुझमें दोष है, उस कारण से ही। हाँ, उसका कारण यह कि कहनेवाले में दोष होना ही चाहिए।
___ 'आप ऐसा करो, यह करो' ऐसा कोई वचनबलवाला कहे तो चलेगा। यह तो वचनबल ही नहीं है, इसलिए शिष्य की गाड़ी आगे चलती ही नहीं। यह तो एक प्रकार की कहने की बुरी आदत पड़ी हुई होती है।
___ वह सामर्थ्य ही सबकुछ सँभाल ले
और सर्वत्र नियम ऐसा ही होना चाहिए कि गुरु को ही कर देना चाहिए। गुरु के पास लोग किसलिए जाते हैं? यह तो गुरु से होता नहीं, इसलिए गुरुओं ने सिर पर ठोक दिया कि 'तुम कुछ करो, तुम नहीं करते, तुम नहीं करते।' इसलिए फिर अपने लोग वैसा मान बैठे। गुरु उलाहना देते हैं और लोग सुनते