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गुरु-शिष्य
दादाश्री : सद्गुरु को खोजना मुश्किल है न! वैसे सद्गुरु तो यहाँ मिल सकें, ऐसा है नहीं। वह आसान चीज़ नहीं है। सद्गुरु ज्ञानी होने चाहिए। ज्ञानी नहीं हों, वैसे गुरु होते हैं, लेकिन वे पूरापूरा समझते नहीं हैं। ज्ञानी तो संपूर्ण समझा देते हैं आपको, सारी हक़ीक़त समझा देते हैं। कोई चीज़ जाननी बाक़ी नहीं रहे, उन्हें ज्ञानी कहते हैं। सिर्फ जैनों का ही जानें ऐसा नहीं हो, सभी कुछ जानते हों, उन्हें ज्ञानी कहते हैं। उन्हें मिलें तो नवें भव में मोक्ष हो जाएगा या फिर दो जन्मों में भी मोक्ष हो सकता है।
पर सद्गुरु मिलने मुश्किल हैं न! अभी तो सच्चे गुरु भी नहीं हैं, वहाँ सद्गुरु कहाँ से होंगे फिर? और श्रीमद् राजचंद्र जैसे सद्गुरु थे, तब लोग उन्हें पहचान नहीं पाए।
पहचानने के बाद ही शरण प्रश्नकर्ता : उस प्रकार के सद्गुरु की पहचान क्या है? पहचानें किस तरह?
दादाश्री : वह तो प्रकट दीये जैसे पहचानवाले होते हैं। उनकी सुगंध आती है, बहुत सुगंध आती है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन सद्गुरु को पहचानें किस तरह कि ये सच्चे सद्गुरु
दादाश्री : ऐसा है, कि यदि खुद जौहरी हो तो उन्हें वह आँखों से ही पहचान सकता है। उनके वाणी-वर्तन और विनय मनोहर होते हैं। मन का हरण कर लें वैसे होते हैं। हमें ऐसा लगता है कि ओहो! अपने मन का हरण हो रहा है।
प्रश्नकर्ता : कितनी ही बार गुरु में-सद्गुरु में उनका व्यवहार ऐसा होता है कि उसे देखकर मनुष्य का निश्चय डगमगाने लगता है, तो उसके लिए क्या करें?
दादाश्री : व्यवहार देखकर निश्चय डगमगाने लगे, तो फिर बारीकी से