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गुरु-शिष्य
बिल्कुल भरे हुए हों तो फिर अपने में भी है और उनमें भी है तो फिर अपने पास क्या आया? इसलिए जो कषाय से भरे हुए हों, उन्हें गुरु नहीं बना सकते। जो ज़रा-सा छेड़ने पर फन उठाएँ, तो उन्हें गुरु नहीं बना सकते। जो अकषायी हों या फिर मंद कषायवाले हों, तो वैसे गुरु बना सकते हैं। मंद कषाय अर्थात् जो मोड़े जा सकें वैसी दशा हो, खुद को क्रोध आने से पहले क्रोध को मोड़ दें, अर्थात् खुद के कंट्रोल में आ चुके होने चाहिए। तो वैसे गुरु चलेंगे। जब कि ज्ञानीपुरुष में तो क्रोध-मान-माया-लोभ होते ही नहीं, वे परमाणु ही नहीं होते। क्योंकि खुद अलग रहते हैं, इस देह से, मन से, वाणी से, सबसे अलग रहते हैं!
सद्गुरु किसे कहें? प्रश्नकर्ता : अब सद्गुरु किसे कहें?
दादाश्री : ऐसा है न, सद्गुरु किसे कहें, वह बहुत बड़ी मुश्किल है। सद्गुरु किसे कहा जाता है, शास्त्रीय भाषा में? कि सत् अर्थात् आत्मा, वह जिसे प्राप्त हुआ है वैसे गुरु, वे सद्गुरु!
अर्थात् सद्गुरु, वे तो आत्मज्ञानी ही सद्गुरु कहलाते हैं, आत्मा का अनुभव हो चुका होता है उन्हें। सभी गुरुओं को आत्मज्ञान नहीं होता। इसलिए जो निरंतर सत् में ही रहते हैं, अविनाशी तत्व में ही रहते हैं, वे सद्गुरु! इसलिए सद्गुरु तो ज्ञानीपुरुष होते हैं।
प्रश्नकर्ता : श्रीमद् राजचंद्र कह गए हैं कि प्रत्यक्ष सद्गुरु के बिना मोक्ष होता ही नहीं।
___ दादाश्री : हाँ, उनके बिना मोक्ष होता ही नहीं है। सद्गुरु कैसे होने चाहिए? कषाय रहित होने चाहिए, जिनमें कषाय ही नहीं हो। हम मारे, गालियाँ दें तो भी कषाय नहीं करें। सिर्फ कषाय रहित ही नहीं, परंत बुद्धि खत्म हो जानी चाहिए। बुद्धि नहीं होनी चाहिए। इन बुद्धिशालियों के पास हम मोक्ष लेने जाएँ, तो उनका ही मोक्ष नहीं हुआ है तो आपका कैसे होगा? यानी धौल मारें तो भी असर नहीं, गालियाँ दें तो भी असर नहीं, मार मारें तो भी असर नहीं,