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गुरु-शिष्य
दादाश्री : कुछ भी नहीं चलेगा । उसे सामने कहनेवाला चाहिए कि तूने यह भूल की है। यदि मन से मान लो, तो वह ऐसा है न, इस पत्नी को मन से मान लो न! एक लड़की को देखा और फिर मान लो न कि मेरी शादी हो गई है ! फिर शादी नहीं करोगे तो चलेगा?
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प्रश्नकर्ता : उदाहरण के तौर पर कोई गुरु परदेस में जाकर हमेशा के लिए बस गए हों और यहाँ आनेवाले ही नहीं हों और मुझे उन्हें गुरु मानने हों तो मैं उनका फोटो रखकर उन्हें अपना गुरु नहीं मान सकता?
वे
दादाश्री : नहीं। उससे कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। गुरु तो, रास्ता दिखाएँ | फोटो रास्ता नहीं बताता । इसलिए वे गुरु काम के नहीं हैं। हम बीमार हो जाएँ, तो डॉक्टर का फोटो रखें और उसका ध्यान करते रहें तो रोग मिट
गुरु ।
जाएगा?
था?
'आपके' गुरु कौन ?
प्रश्नकर्ता : आपको ज्ञान प्रकट हुआ तो आपने किसीको गुरु बनाया
दादाश्री : कोई प्रत्यक्ष गुरु तो मिले नहीं हैं । वास्तव में गुरु किसे कहा जाता है? प्रत्यक्ष मिलें तो। नहीं तो, चित्रपट तो ये सभी हैं ही न? कृष्ण भगवान प्रत्यक्ष मिलें, तो काम के । नहीं तो चित्रपट तो लोगों ने बेचे और हमने मढ़वाए । हमें इस भव में डिसाइडेड गुरु नहीं मिले कि ये ही गुरु हैं। वर्ना यदि प्रत्यक्ष हों न, उन प्रत्यक्ष का धारण करे और छह महीने, बारह महीनों तक उन दोनों गुरु-शिष्य का संबंध रहे, उन्हें गुरु कहा जाता है । हमारा ऐसा कोई संबंध नहीं रहा । प्रत्यक्ष कोई नहीं मिले।
में
कृपालुदेव के ऊपर भाव अधिक था ! परंतु वे प्रत्यक्ष नहीं थे, इसलिए गुरु के रूप में स्वीकार नहीं करूँगा। मैं गुरु की तरह स्वीकार किया किसे कहूँगा? कि प्रत्यक्ष मुझे कहें, प्रत्यक्ष आदेश दें, उपदेश दें, उन्हें मैं गुरु कहूँगा । कृपालुदेव यदि एक पाँच ही मिनट मिले होते मुझे, तो उन्हें मैंने मेरे गुरुपद पर स्थापित कर दिया होता। ऐसा समझ में आया है मुझे ! मैंने गुरुपद पर