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गुरु-शिष्य
वह अनुभव नहीं है। इसलिए ये सभी गुरु ही हैं।
अरे, एक आदमी लंगड़ा रहा था और दूसरा एक उसका मज़ाक करके हँसा। फिर थोड़ी देर के बाद वह मुझे मिला। उसने मुझे कहा कि आज मैं ऐसे मज़ाक करके हँसा। तब मैं जागृत हो गया कि अरे, यह तू आत्मा देखता है या क्या देखता है? मुझे यह ज्ञान हुआ, तो सच में सावधान हो गया।
___ अर्थात् हर एक वस्तु उपदेश देती है। हमेशा हर एक अनुभव उपदेश देकर ही जाता है। एक बार अच्छी तरह बैठे हों और जेब कट गई हो, तब फिर वह उपदेश हमारे पास रह ही जाता है।
इस कुत्ते से भी जानने को मिले तो जान लेना चाहिए। अर्थात् ये कुत्ते भी गुरु कहलाते हैं। यह कुत्ता है, वह डेढ़ घंटे से बैठा हुआ हो, परंतु यदि खाने का बहुत सारा डालें, तो भी वह खाया जाए उतना ही खाता है और दूसरा सब छोड़कर चला जाता है। वह कुछ परिग्रह बाँधकर नहीं जाता कि 'लाओ, मैं ऐसा करूँ।' उसके पास से भी हमें सीखने को मिलता है। इसलिए हर एक वस्तु जिसके पास से हमें सीखने को मिलता हो, उन सभी को हम गुरु मान लें। कुत्ते को कुछ गुरु नहीं बनना है। उसे यदि हम गुरु मानें तो उसका उपदेश हममें परिणमित होता है। सही तरीक़ा यही है!
यह ठोकर भी गुरु कहलाती है। गुरु के बिना तो व्यक्ति आगे बढ़े ही किस तरह? हमें रास्ते चलते ठोकर लगे तो ठोकर को भी ऐसा होता है कि 'तू नीचे देखकर चले तो क्या बुरा है?' इसलिए हर एक गुरु, जहाँ-तहाँ सब मुझे गुरु लगे हैं। वह तो जहाँ से लाभ हुआ हो, उन्हें गुरु मान लें। ठोकर से यदि लाभ हुआ हो तो ठोकर को हम गुरु मान लें। इसलिए मैंने तो इस तरह लाभ प्राप्त किए हैं सारे।
बाक़ी, गुरु पर चिढ़ नहीं आनी चाहिए। गुरु पर चिढ़ने से तो आज ज्ञान अटक गए हैं सारे!
गुरु-विरोधी, पूर्वग्रह से ग्रसित यानी गुरु किए बिना चले ऐसा नहीं है। 'गुरु के बगैर चले ऐसा है'