________________
गुरु-शिष्य
नहीं हो सकता, कभी भी किसीसे हुआ नहीं और होगा नहीं। इसलिए निमित्त हमेशा चाहिए ही।
प्रश्नकर्ता : महावीर स्वामी के गुरु कौन थे?
दादाश्री : महावीर स्वामी के बहुत सारे गुरु हो चुके थे। परंतु वे पिछले एक-दो अवतारों में नहीं हुए थे। यों वह क्या ऐसे ही लड्डू खाने के खेल हैं? तीर्थंकर के अंतिम अवतार में उन्हें गुरु की ज़रूरत नहीं रहती।
कब तक गुरु ज़रूरी? ___प्रश्नकर्ता : एकलव्य ने गुरु नहीं होने के बावजूद भी सिद्धि प्राप्त की थी, वह क्या संभव नहीं है?
दादाश्री : एकलव्य को जो सिद्धि मिली वह एक्सेप्शनल है, अपवाद है। वह हमेशा का नियम नहीं है। हर एक नियम के अपवाद हो सकते हैं, दो-पाँच प्रतिशत ऐसा भी होता है, लेकिन उसके कारण हम ऐसा नहीं मान लें कि यही नियम है। इस भव में गुरु नहीं हों, तो पूर्व भव में गुरु मिले ही होते हैं!
___प्रश्नकर्ता : एकलव्य को गुरु द्रोण ने नहीं सिखाया और उसने गुरु की मूर्ति के पास से सीखा!
दादाश्री : वे तो सारा पिछले भव में सीखे हुए थे। अभी यह मूर्ति तो निमित्त बनती है। गुरु तो हर एक अवतार में चाहिए ही।
प्रश्नकर्ता : तो फिर ऐसा कह सकते हैं कि 'पिछले भव के मेरे गुरु होंगे वे ही करेंगे मेरा।' तो इस भव में गुरु बनाने की ज़रूरत है?
दादाश्री : लेकिन इस भव में वे गुरु न भी मिलें, और ज़रूरी भी नहीं होता और फिर दूसरे जन्म में भी वे फिर से मिल सकते हैं।
लेकिन ऐसा है न, अभी तो आगे कितना रास्ता चलना बाक़ी रहा, अभी तो कितने ही गुरुओं की ज़रूरत पड़ेगी। जब तक मोक्ष नहीं हो जाता, तब