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गुरु-शिष्य
हूँ, वह पद कम है? पूरे जगत् के शिष्य के रूप में ज्ञानी हूँ! लघुत्तम पुरुष हूँ! फिर इससे बड़ा पद कौन-सा? लघुत्तम पद से कभी भी गिर नहीं सकते, उतना बड़ा पद है!
और जगत् का शिष्य बनेगा न, वह गुरुत्तम बनेगा! रास्ता ही यह है, हाँ! यह वाक्य दिशा बदलने को कहता है। आप जो गुरुतम अहंकार करते फिरते हो, मतलब क्या कि 'मैं इस तरह आगे बढूँ और भविष्य में बड़ा कैसे बनूँ!' वैसा जो आप प्रयत्न कर रहे हो, वह गुरुत्तम अहंकार कहलाता है। उसके बदले, 'मैं किस तरह छोटा बनूँ' ऐसे लघुत्तम अहंकार में जाओगे तो जबरदस्त ज्ञान प्रकट होगा! गुरुत्तम अहंकार हमेशा ज्ञान पर आवरण लाता है और लघुत्तम अहंकार ज्ञान प्रकट करता है।
इसलिए किसीने कहा कि, 'साहब, आप तो बहुत बड़े मनुष्य हैं !' मैंने कहा, 'भाई, तू मुझे पहचानता नहीं, मेरा बड़प्पन नहीं पहचानता। तू गाली देगा तब पता चलेगा कि मेरा बड़प्पन है या नहीं!' गालियाँ दें, तब पुलिसवाले का स्वभाव दिख जाता है या नहीं दिख जाता? वहाँ 'तू क्या समझता है?' ऐसा कहे तो समझना कि आया पुलिसवाला! पुलिसवाले का स्वभाव मुझमें दिखे तो समझना कि मुझमें बड़प्पन है। पुलिसवाले का स्वभाव नहीं दिखे तो 'मैं लघुत्तम हूँ' यह विश्वास हो गया न !
इसलिए हमें कोई गाली दे तो हम कहते हैं कि भाई देख, तेरी गाली है, वह हमें स्पर्श नहीं करती, उससे भी हम छोटे हैं। इसलिए तू ऐसा कुछ ढूँढ निकाल, हमें स्पर्श करे वैसी गाली बोल। तू हमें 'गधा है' कहेगा, तो उससे तो बहुत छोटे हैं हम। तो तेरा मुँह दुःख जाएगा। हमें गाली छुए वैसा हमारा स्थान ढूँढ निकाल। हमारा स्थान लघुत्तम है।
जगत् के शिष्य को ही जगत् स्वीकारेगा यानी 'ये' तो कौन हैं? लघुत्तम पुरुष! लघुत्तम पुरुष के दर्शन कहाँ से मिलें? ऐसे दर्शन ही नहीं होते न! वर्ल्ड में एक आदमी ढूँढ लाओ कि जो लघुत्तम हो और ये पचास हजार लोग होंगे, परंतु इन सभी के शिष्य हैं हम।