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________________ मन्दिर हैं / बड़े मन्दिर में मूलनायक भगवान् श्रीशान्तिनारस्वामी की भव्य मूर्ति विराजमान है जो प्राचीन है। 50 आकड़िया- इस गाँव में श्वेताम्बर जैनों का एक भी घर और जिममंदिर नहीं है, परन्तु स्थानकवासी जैनों के 25 घर और एक छोटा स्थानक है / यहाँ के जैन मंदिर मार्गी साधु साध्वियों को उतरने के लिये स्थान देने में भी पाप मानते हैं / भला ! जहाँ स्थान देने में पाप समझा जाता हो, वहाँ आहार पानी की आशा रखना तो शश,गवत् ही है / 51 कुकावाव यहाँ संकुचित धृत्तिवाले, जैनेतरों से भी गये गुजरे और नाममात्र के जैन कहानेवाले स्थानकवासी जैनों के 30 घर हैं, जो हिंसकदेवों और पीर-दरगा को शिर झुकाने वाले हैं / इस से इनकी स्थिति भी साधारण है। 52 चूडा___ इस छोटे गाँव में मिथ्यादृष्टियों हिंसक देवी देवताओं के उपासक और मूर्तिपूजक साधु साध्वियों के द्वेषी स्थानकवासी मात्र नाम रखाने वाले जैनों के, अथवा यो समझिये कि जैनाभासों के 25 घर हैं। जिनके घरों में स्थानकवासी मुनि, आर्याभों को भी आहार जल मिलना दुर्लभ है, तो मंदिरमार्गी साधु साध्वियों की बात ही क्या करना ? यहाँ के जैनेतर लोग बहुत भावुक और .सतसंगी है। ..
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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