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________________ (46 ) मूलनायक भगवान् श्रीआदिनाथस्वामी आदि मूर्तियाँ बिराजमान की यह तीर्थ सनातन त्रिस्तुतिक-संप्रदायी राजगढ-श्रीसंघ को समर्पण किया।" - दूसरा जिनालय भगवान् श्रीपार्श्वनाथस्वामी का है / मुख्य जिनालय के दाहिनी तरफ, मंदिर की हद के बाहर श्रीराजेन्द्रसूरीश्वर-समाधि मन्दिर है। इसके मध्य में आरस की नक्सीदार सुन्दर छत्री बनी हुई है, जिसमें जाली के नीचे एक शिला-लेख लगा है / उसमें लिखा है किश्रीसौधर्मबृहत्तपोगच्छाचार्यविजयराजेन्द्रसूरीशः। शशिनवरसगुणवर्षे, पौषसितषष्ठीकवौ राजगढनगरे // 1 // निर्वाणमियाय तनुं, मोहनखेडापुरी संश्चके संघः। मानश्रीसदुपदेशादारसोपलै-स्तत्रैवाकरोच्छत्रीम् // 2 // श्रीमान् यतीन्द्रविजयःस्थित्वा,मासत्रयमिहजनमिथः क्लेशम् / अपनीय मुदाप्रतिष्ठाञ्जनशलाका, प्रबन्धमचीकरत्सर्वम् // 3 // चन्द्राष्टाङ्कशशाङ्कविक्रममिते वर्षे द्वितीया बुधे, ज्येष्ठे राजगढस्थसंघसुजनः शुक्ले महोत्साहतः / आहूय स्वगुरूनुदारयमिभिर्भूपेन्द्रसूरीश्वरांस्तद्धस्तेन चकार भूरिमुदितः श्रीसद्गुरोः स्थापनाम् // 4 // . संवत् 1981 में महाराज श्रीभूपेन्द्रसूरिजी की प्रतिष्ठित गुरु- मूर्ति को राजगढ के अंगतद्वेषी-धर्मभ्रष्ट दो चार चतुर्थ. स्तुतिकों ने आधी रात को जा कर खंडित कर दी। श्रीसंघ के तरफ से दूसरी हुबोहुब मूर्ति मंगाकर उसके स्थान पर
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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