________________ (293 ) में तपागच्छीय संघ के कराये और बाबू पर लाये हुए पित्तलमयय प्रौढ आदिनाथ के बिंब से शोभित श्रीचतुर्मुखमन्दिर में द्वितीयादि द्वारों में स्थापन करने के लिये तपागच्छ के संघने श्रादिनाथ का बिम्ब कराया और उसकी प्रतिष्ठा डूंगरपुर में राउल श्रीसोमदास के राज्य में ओसवाल शा० साभा की स्त्री कर्मादे के पुत्र माला और सल्हा के कराये हुए आश्चर्यजनक प्रतिष्ठा महोत्सव पूर्वक तपागच्छीय श्रीसोमसुन्दरसूरि के पटधर मुनिसुन्दरसूरि और जयसुन्दरसूरि, उनके पटधर रत्नशेखरसूरि के शिष्य श्रीलक्ष्मीसागरसूरिजीने आचार्य सोमदेवसूरि प्रमुख परिवार के सहित की / डूंगरपुर के श्रीसंघ की आज्ञा से सलावट लुंभा और लापा आदिने यह मूर्ति बनाई / प्रतिष्ठा महोत्सव का करानेवाला साल्हा डूंगरपुर का रहनेवाला और राउलसोमदास का मंत्री था। इसने 120 मण वजनवाली पित्तलमय एक जिनप्रतिमा तैयार कराई थी। ऐसा गुरुगुणरत्नाकर-कारने लिखा है / अस्तु. चतुर्मुखविहार नामक अचलगढ़ के मुख्य मन्दिर में सब मिलाकर धातुमय प्रतिमा 14 और पाषाणमय 6 प्रतिमाएँ हैं। इस प्रकार अर्बुदगिरि नामक पवित्र तीर्थ के जिनमन्दिरों ( देलवाडा, ओरिया, कुमारपाल और अचलगढगत मन्दिरों) में धातु और पाषाण की छोटी बड़ी सब जिनप्रतिमाओं की संख्या 1713 हैं / यह संख्या हमने खुद अाबु रह कर सं० 1986 चैत्रसुदि 11 शुक्रवार के दिन स्वयं सावधानी से गिन करके लिखी है।