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________________ ( 280) तंबोली श्रादि प्रजाजनों को बुलाकर, उनके समक्ष इस प्रकार का शासनपत्र किया कि आज अमावास्या के दिन स्नान कर, देवता तथा पितरों का तर्पण और नगरदेवों को पूजा आदि से प्रसन्न करके इस जन्म तथा परजन्ममें पुण्यफल प्राप्त करने और यश बढाने की अभिलाषा से प्राणियों को जीवित दान देने के लिये प्रतिमास में कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी, चतुर्दशी, अमावास्या और पूनम के दिन किसी को किसी प्रकार के जीव की हिंसा हमारी सीमा में न करना चाहिये / हमारी सन्तति में होने. वाले प्रत्येक मनुष्य को, हमारे प्रधान, सेनानायक, पुरोहित और जागीरदारों को इस प्राज्ञा का पालन करना, कराना चाहिये / सब को विदित करने के लिये महाजनों की सम्मति से यह फरमान पत्र जाहिर किया गया है / अतएव इसको चन्द्रसूर्यस्थिति पर्यन्त सब कोई को पालन करना चाहिये / जो कोई इस को खंडित करेगा वह दंडनीय समझा जायगा / व्यासजीने भी कहा है कि सगरादि राजाओं से भोगी गई यह भूमि जब जिस जिस राजा के अधीन होती है, तब उस भूमि का फल उस उस राजा को मिलता है 1, रामचन्द्र होनेवाले सभी राजामों से वारंवार इस प्रकार याचना करते है कि राजाओं का यह सामान्य धर्म है कि समय समय उनको धर्मरूप पुल का सेवन करना चाहिये 2. हमारे वंश में उत्पन्न कोई भी धन्य ( प्रशंसा के लायक ) पुरुष होगा उसके मैं करसंलग्न हूँ, अत: उसको मेरे शासन का लोप न करना चाहिये /
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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