________________ परिशिष्ट, नम्बर-१ जो गाँव थराद स्वस्थान के निकटवर्ती हैं, पर एक रास्ते में श्रृंखला-बद्ध नहीं है। उनका बयान इस परिशिष्ट में दिया जाता है / इस प्रान्त में इनमें के कतिपय स्थान प्रायः पवित्र तीर्थ स्वरूप माने जाते हैं और उनमें प्रान्तवर्ती अनेक जैन इनकी यात्रा के लिये आते हैं। अतएव थराद से लगते ही इन पवित्र स्थानों का उपलब्ध वृत्तान्त इस पुस्तक के परिशिष्ट में लिख देना अस्थान नहीं है। 1 वाव स्वस्थान थराद से पश्चिम 5 कोश के फासले पर यह कसबा वसा हुआ है / यहाँ के ठाकुर चौहान राजपूत हैं, परन्तु वे यहाँ राणा के नाम से व्यवहृत हैं / इनके वंशज प्रथम थराद के राज्यकर्ता थे। लेकिन पुंजाजी चौहाण जब मुसलमानों के साथ लडाई में मारे गये, तब उनकी सेढी नामक राणी अपने नवजात बालक बजाजी को लेकर दीपाथुलडा टेकरी पर दीपा भील के आश्रय में जा रही / वजाजी जब लायक उम्मर का हुआ तब उसने प्रथम यहाँ एक वाव ( वावडी-वापिका ) बनवाई और बाद सन् 1244 इस्वी में वाव के नाम से कसबा वसा कर स्वयं