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________________ (202) गरीबपरवर ! भीनमाल में सोने का एक अद्भुत भूतखाना जमीन से निकला है, उसको मंगा लीजिये, इतना धन छोडना नहीं चाहिये / इस सूचना को पाते ही गजनीखानने उस पार्श्वनाथ प्रतिमा को जालोर मंगवा ली। ___ इधर सारा संघ एकत्रित होकर जालोर श्राया, और गजनीखान से अर्ज करना शुरू की कि -- यह भूतखाना बाबा आदम का रूप है, ईसकी खिनमत करना चाहिये, किन्तु इसका खून नहीं / आप इसको हमारे सुप्रत करिये और इसके एवज में चार हजार पीरोजी हमसे ले लीजिये / ___ गजनीखानने जबाब दिया कि एक लाख रुपयों के मामले में चार हजार पीरोजी पर यह भूतखाना किस प्रकार छोडा जा सकता है , अगर एक लाख रुपया देने को हो तो बात करो; बरना यहाँ से चले जाओ, ज्यादः शिरपच्ची करोगे तो नतीजा अच्छा नहीं आवेगा'। . यह सुनते ही सारे संघ में कोलाहल मच गया, उदासीनता छा गई और प्रतिमा वापिस किस तरह प्राप्त करना यह विचार करना भी भुला गया / कई भावुकोंने नाना अभिग्रह लिये / भीनमाल के संघवी-वीरचंद म्हेताने तो यहाँ तक दृढ निश्चय किया कि ' जबतक पार्श्वनाथ प्रतिमा' की पूजा न करूं, तब तक अन्न जल भी नहीं लूंगा और यहां से हटूंगा भी नहीं / लोगोंने वीरचंद को इस कार्य के लिये बहुत रोका, पर वह अपनी प्रतिज्ञा से किसी प्रकार नहीं हटा /
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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