________________ ( 198) 1333 आसोजसुद 14 के दिन श्रीमहावीरस्वामी की वार्षिक पूजा के लिये 13 द्रम और 7 विंशोपक दानमें दिये और महावीरप्रभु श्रीमाल लाये गये ऐसा लिखा है। इससे जान पड़ता है कि यह खंडेहर महावीर जैन मन्दिर का है। इसका अच्छी नकशीवाला जिनमूर्ति सहित एक तोरण का खंडित अंश तालाव की नैऋत्य नहर की भींत में लगा हुआ है। वर्तमान भीनमाल में ओसवाल जैनों के 451 घर हैं, जो प्रायः सनातन त्रिस्तुतिक संप्रदाय के हैं और उनमें तपागच्छ तथा अंचलगच्छ ये दो विभाग हैं / तपागच्छ का एक उपासरा, एक धर्मशाला और अंचलगच्छ का एक उपासरा, एक धर्मशाला है / यहाँ सात जिन मन्दिर हैं, जो प्राचीन, भव्य और दर्शनीय हैं। 1 सब से प्राचीन और सौधशिखरी मन्दिर वधुवास में है, जो राजा कुमारपाल का बनवाया माना जाता है। कहा जाता है कि पेश्तर इसमें श्री आदिनाथ भगवान् की सर्वाङ्ग सुन्दर प्रतिमा विराजमान थी, जो महाराज श्रीहेमचन्द्रसूरिजी की प्रतिष्ठित थी / परन्तु उसके खंडित हो जाने से उसके स्थान पर सफेदवर्ण की दो हाथ बड़ी श्रीमहावीरस्वामी की भव्य मूर्ति पीछे से बैठाई गई है / इसकी पलांठी के नीचे लिखा है कि___ संवत् 1873 वर्षे माघशुक्ला 7 शुक्रे महावीरजिनबिंब श्रीभीनमालनगरे समस्तसंघेन कारापितं, भ० श्रीश्रीविजयजिनेद्रसरिभिः प्रतिष्ठितं, श्रीतपागच्छे, कल्याणमस्तु / "