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________________ (199) में ओसवालजैनों के 30 घर हैं, जो नाममात्र के जैन और मिथ्यात्वी देवों के श्रद्धालु हैं। 175 नरता यह गाँव छोटा है, इसमें पोसवालजैनों के 11 घर हैं; जिनमेंभी कई वर्षों से दो तडे हैं / यहाँ के महाजन धर्मभावनासे रहित होने से यहाँ साधुयोग्य कोई स्थान नहीं है / 176 भीनमाल ' मारवाड में जोधपुररियासत के जसवन्तपुरा परगने का यह अच्छा कसबा है / जो लगभग 20 से 30 फीट ऊंची और उत्तर-दक्षिण पौन मील लंबी विस्तृत टेकरी ( पहाड़ी जमीन ) पर बसा हुआ है / यह उत्तर 2442deg अक्षांश और पूर्व 72040 रेखांश है / इसकी सीमा में उत्तर सुकडी ( सुक्री ) नदी, पूर्व प्राबू की पर्वतमाला, दक्षिण सांचोर प्रदेश और पश्चिम लूणी नदी है __ यह अणहिल्लवाड़ ( पाटण ) की स्थापना के पूर्व गुजरात की मुख्य राजधानी का नगर समझा जाता था और तेरहवीं सदी तक इसकी गौरवता, तथा व्यापार समृद्धि ज्यों की त्यों बनी रही। परन्तु सन् 1987 इस्वी में मुगल शहेनशाह अकबरने मारवाड़विभाग के साथ इसको जोड़ दिया, बाद में जोधपुर के महाराजा 1 यह सिरोही और मारवाड के सरहद के पहाडों से निकली है और जालोर होकर लूणी नदी में मिल गई है / यह 130 मील लंबी है, और इसमें इमेशां जल नहीं रहता।
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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