________________ द्राविडदेशों में शताब्दीयों तक जैनधर्म का शासन रहा है, वहाँ वह अब अज्ञात ही सा हो गया है।" इन सब बातों का विचार किये बाद हमें इस निर्णय पर स्थिर रहना पडता है कि जैन साधु भारत की एक धार्मिक संस्था है और वह अपने आचार-विचारों के नियमानुसार भ्रमणशील है। प्रतिवर्ष चातुर्मास के सिवाय शेषकाल के आठ महिनों तक एक गाँव से दूसरे गाँव अप्रतिहत विहार करना और तन्निवासियों को धार्मिक बोध देने के साथ साथ में ऐतिहासिक साहित्य सामग्री को विकाश में लाना यह उनका स्वाभाविक कर्त्तव्य-पथ है / इसी कर्तव्यपथ को अपना लक्ष्यबिन्दु बना कर आधुनिक साधु साध्वी यदि विहार दरमियान आये हुए गाँवों की ज्ञातव्य बातों की नोंध प्रतिवर्ष प्रकाशित कर दिया करें तो इतिहास संबन्धी साहित्य को बड़ी भारी मदत मिल जाय और जो बातें अभी अंधारे में ही पडी हुई हैं वे प्रकाश में आ जायँ / अस्तु. ___पाठको ! प्रस्तुत पुस्तक, जो आप लोगों के कर-कमलों में उपस्थित है इन्हीं विषयों पर प्रकाश डालनेवाली है / सं 1925 नवेम्बर तारीख 7 के दिन कुक्सी से काठीयावाड, गुजरात और मारवाड तक हुए लंबे विहार के दरमियान आये हुए गाँवों और गुडाबालोतरा से सन् १९२७नवेम्बर तारीख २२के दिन हुए लंबे विहार के गाँवों की संक्षिप्त नोंध इसमें दर्ज की गई है / यहाँ उन गाँवो के नाम, उनमें जैनों के घर और उनमें तारीखवार हुई स्थिरता की तालिका लिख देते हैं जो साधु साध्वियों को एक गाँव से दूसरे गाव विहार करने में उपयुक्त है।