________________ दानपत्रा उपलब्ध हैं, वे अप्रतिबद्ध विहार के वास्तविक रहस्य को ही प्रगट कर रहे हैं। ... जिन अश्रुतपूर्व बातों का हमे पता तक नहीं था, वे आज हमे हस्तामलकवत् दिखाई देती हैं, और हमारे पूर्वजों की आर्थिक शक्ति, धार्मिकशक्ति, और आत्मिकशक्ति का भान कराके आश्चर्यनिमग्न करती हैं / इतना ही नहीं किन्तु, हमारी हार्दिक भावनाओं में उत्तेजना शक्ति प्रगट करके वैसा ही बनने को उत्साहीत करती हैं / .. सोचो कि यह सब प्रभाव किसका है ? कहना ही पडेगा कि क्षेत्रों का, उपाश्रयों का, श्रावकों का और श्राविकाओं का प्रेम न रखनेवाले परोपकारी श्रात्मदर्शी मुनि, पन्यास, उपाध्याय और आचार्यों के अप्रतिबद्ध विहारों का ही फल है / अगर उन्होंने उपकारदृष्टि को लक्ष्य में रख कर और प्रतिकूल, या अनुकूल अनेक उपसर्गों को सह कर प्रतिदेश, या प्रतिनगरों में विहार न किया होता तो हमारे पूर्वजों, हमारे प्रभावक तीर्थों और अद्वितीय ज्ञानभंडारों का गहनातिगहन इतिहास आकाशकुसुमवत् ही बन जाता / - वर्तमान युग के पाश्चात्य विद्वान् जैनधर्म की विशालता और प्रमाणिकता स्वीकार करते हैं उन्हों के साधन भी पूज्य मुनिवरों के विशाल विहार और कृतकार्यों के फलस्वरूप ही समझना चाहिये / पूर्वकालीन पूज्य मुनिवर अनेक मुसीबतों का सामना करके भारतवर्ष के चारों और विचरते थे, जिससे यह जैनधर्म विशालकोटी के ऊँचे शिखर पर विराजमान था। इस विषय में मिस्टर विन्सेन्ट स्मिथ साहब के उद्गार मानीय हैं