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________________ (57) परन्तु जब उसको प्राणान्त समय की वेदना होती है। वेदना से जब उस को कुछ होश आता है, तब वह सोचने लगता है कियदि मैंने यह अकार्य नहीं किया होता तो अच्छा होता / अब मैं कैसे इस यंत्रणा से बच सकता हूँ / यह भी ध्यान में रखने की बात है कि-कायर मनुष्य ही आत्मघात करते हैं / वीर हृदयी मनुष्य विषादि प्रयोगों से कभी मरने का प्रयत्न नहीं करते हैं। वे सदा इस नीति के नियम को याद रखते हैं कि 'जीवन्नरः शतं भद्राणि पश्यति / / ( जीवित मनुष्य सैकड़ों कल्याण देखता है / ) शास्त्रकार आत्मघाती को महा पापी बताते हैं। इसका कारण यह है किअज्ञानता की चरमसीमा के सिवा आत्मघात के समान बहुत बड़ा अकार्य नहीं होता है। अज्ञानी मनुष्य बहुत से जन्मों तक संप्तार चक्र में भ्रमण किया करता है। सारे कथनका मथितार्थ-तात्पर्य-यह है कि, सारे अनर्थों का मूल क्रोध है इसलिए इससे बचने का हमेशा प्रयत्न करते रहना चाहिए। क्रोध को जीतने के साधन / क्रोध के स्वरूप का वर्णन करने के बाद अब यह बताना आवश्यक है कि क्रोध कैसे जीता जा सकता है-मनुष्य कोषसे कैसे बच सकता है /
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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