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________________ ( 596 ) मलवातयोर्विगन्धोविड्भेदोगात्रगौरवमरुच्यम् / अविशुद्धश्चोद्गारः षडजीर्णव्यक्तलिङ्गानि // भावार्थ-(१) मलमें और अपान वायु में दुर्गंध आने लगे (2) टट्टी में गड़बड़ी हो (3) आलस्य आवे (4) पेट फूल जाय (5) भोजन पर कम रूचि रहे (6) खराब डकारें आवे तो जानना की अजीर्ण हो गया है। अर्थात् इन छ बातों का होना अजीर्ण का चिन्ह है। इनमें से यदि एक भी बात शरीर में हो जाय तो तत्काल ही भोजन छोड़ देना चाहिए। ऐसा करने से जठराग्नि विकार को भस्म कर देती है। धर्मशास्त्र कहते हैं कि, प्रतिपक्ष एक उपवास करना चाहिए। जो धर्मशास्त्रों की इस आज्ञा को मानता है, उसकी प्रकृती कभी विकृत नहीं होती, वह कभी रोगी नहीं होता / कर्मननित रोग के लिए कोई कुछ नहीं कर सकता है। आजकल कई कहते हैं कि उपवास न करके दस्त लेना चाहिए। मगर यदि हम शान्ति से विचार करेंगे तो मालूम होगा कि, दस्त लेना, इसलोक और परलोक दोनों में हानिकर्ता है। मगर उपवास दोनों लोकों का सुधारनेवाला है। दम्त लेनेसे प्रकृति में परिवर्तन होता है। कई वार तो वायु के प्रकोप से दस्त लेनेवालों को बहुत हानि उठानी पड़ती है। इससे पेट में के कीड़े मर जाते हैं, इसलिये हिंसा होती है, और हिंसा परलोक
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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