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________________ (519) करना चाहिए / मनुष्य को अपनी आय चार भागों में बाँटनी चाहिए। ऐसा करने से दोनों लोक में सुख मिलता है। कहा है: पादमायान्निधिं कुर्यात्पादं वित्ताय घट्टयेत् / धर्मोपभोगयोः पादं पादं भर्तव्यपोषणे // भावार्थ-आमदनी का चौथा भाग भंडार में डालना, चौथा धर्म और उपभोग में खर्चना, चौथा व्यापार में लगाना और चौथे से कुटुंब का पालन करना चाहिए / अथवाः आयादधै नियुञ्जीत धर्मे समधिकं ततः शेषेण शेषं कुर्वीत यत्नतस्तुच्छमैहिकम् // 1 // भावार्थ-आय का आधा भाग या आधे से भी ज्यान धर्म में खर्चना चाहिए और अवशेष से तुच्छ सांसारिक कार्य करना चाहिए / जो आय के अनुसार योग्य रीति से धर्मकार्य में धन नहीं खर्चता है वह कृतघ्न कहलाता है। जिस धर्म के प्रताप से मनुष्य के सुख का साधन धन मिलता है। उसी धर्म के लिए यदि मनुष्य कुछ खर्च न करे तो वह कृतघ्न के सिवा और क्या कहा नासकता है! एक कवि युक्तिपूर्वक धनाढ्यों को धर्म कृत्य में व्यय करने की शिक्षा देता हुआ कहता है: लक्ष्मीदायादाश्चत्वारो धर्मानिराजतस्कराः / ज्येष्ठपुत्रापमानेन कुप्यन्ति बान्धवास्त्रयः // 1 //
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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