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________________ (51.) ताम्बूलं प्रतिकर्म मर्मवचनं क्रीडासुगन्धस्पृहा . वेषाडम्बर हास्यगीतकुतुकानङ्गक्रिया तूलिका / कौसुम्भं सरसान्नपुष्पघुसणं रात्रो बहिनिमः / शश्वत्त्याज्यमिंद सुशीलविधवस्त्रीणां कुलीनात्मनाम्॥२॥ भावार्थ:-अकेले जाना, जागरण करना, दूरसे पानी लाना, माताके घर रहना, कपड़े लेनेको धोबीके पाप्त जाना, दूती के साथ संबंध रखना, अपने स्थानसे च्युत होना, सखिके विवाहमें जाना और पतिका विदेश जाना, आदि कार्य स्त्रियों के शीलको भ्रष्ट करने के कारण होते हैं। तांबूल, शृंगार, मर्मकारी वचन, क्रीडा, सुगंध की इच्छा, उद्भटवेष, हास्य, गीत, कौतुक, कामक्रीडा दर्शन, शय्या, कसूबी वस्त्र, कराँची वस्त्र, इस सहित अन्न, पुष्प, केशर और रात्रिके समय घरसे बाहिर जाना आदि बातें कुलीना और सुशीला विधवा स्त्रीको छोड़ देनी चाहिए। चौथा गुण / पापभीरुः / प्रत्यक्ष या परोक्ष रीति से अपाय के कारण रूप पारों का परित्याग करना, मार्गानुसारी का चौथा गुण है। चोरी, परस्त्री गमन, जूआ आदि जिनसे व्यवहार में राज-कृत विडंबना होती है-जिनके करने से राजा दंड देता है ऐसे कार्य करना प्रत्यक्ष कष्टके कारण हैं / मद्य, मांस, अभक्ष्य भक्षण आदि कार्य परोक्ष कष्टके कारण हैं। इनसे नरकादि के दुःख भोगने पड़ते हैं।
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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