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________________ (506) दूसरा गुण। ___ अब मार्गानुसारी के दूसरे गुण का विवेचन किया जायगा। कहा है-' शिष्टाचारप्रशंसकः।' (शिष्ट पुरुषों के आचार का प्रशंसक होना ) जो श्रेष्ठ आचार और आचारी की प्रशंसा करता है वह भी एक दिन अवश्यमेव श्रेष्ठाचारी बनजाते है। व्रती, ज्ञानी और वृद्ध पुरुषों की सेवा करके जिसने शिक्षा पाई होती है वह शिष्ट कहलाता है / ऐसे शिष्टों के आचार का नाम है शिष्टाचार | कहा है: लोकापवादभीरुत्वं दीनाभ्युद्धरणादयः / कृतज्ञता सुदाक्षिण्यं सदाचारः प्रकीर्तितः // 1 // भावार्थ-लोकापवाद से डरने, अनाथ प्राणियों के उद्धार का प्रयत्न करने और कृतज्ञता व दाक्षिण्य को सदाचार कहते हैं। ऐसा भी कहा गया है कि-"सतां आचारः सदाचारः" ( सत्पुरुषों के आचरण का नाम सदाचार है।) एक कविने सत्पुरुषों से आचार की इन शब्दो में प्रशंसा की है। विपद्यच्चैः स्थैर्य पदमनुविधां च महतां . प्रिया न्याय्या वृत्तिर्मलिनमसुभङ्गेऽप्यसुकरम् असन्तो नाभ्योः सुहृदपि न याच्यस्तनुधनः सतां केनोद्दिष्टं विषममसिधाराव्रतमिदम् // 1 //
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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