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________________ चतुर्थ प्रकरण। तीसरे प्रकरण में खास करके वैराग्य की ही पुष्टि की गई है। मगर सब मनुष्य वैरागी नहीं बन सकते इसलिए उनके लिए मार्गानुसारीका उपदेश आवश्यक है। चौथे प्रकरण में उन्हीं गुणों का विवेचन किया जायगा। मनुष्य वही धर्मात्मा हो सकता है जो मार्गानुसारी गुणों का धारक होता है। मार्गानुसारी के पैंतीस गुण होते हैं। योगशास्त्र में उनका अच्छा विवेचन किया गया है। हम भी उसीका अनुसरण करके यहाँ 35 गुणों का वर्णन करेंगे। मार्गानुसारी के गुण। मार्गानुसारी जीव सरलता से सम्यक्त्व के मूल बारह ब्रतों का धारी बन सकता है / यद्यपि सम्यक्त्व और बारह व्रतों की आगे व्याख्या की जायगी तथापि यहाँ भी हम क्रमप्राप्त मार्गानुसारी के 35 गुण बतानेवाले 10 श्लोकों का कुलक यहाँ दिया जाता है।
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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