SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 495
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 468 ) क्रिया है। १२-रागाधीन होकर स्त्री, घोड़ा, हाथी और गाय आदि कोमल पर हाथ फेरना पृष्ठिकी क्रिया है। १३-अन्य मनुष्यों की ऋद्धि समृद्धि को देख कर, ईर्ष्या करना प्रातित्यि की क्रिया है। १४-अपनी सम्पत्ति की प्रशंसा सुन कर प्रसन्न होना; अथग तैल, घृत, दुग्ध और दही आदि के बर्तनों को खुले रखना लामंतोपनिपातिकी क्रिया है। १५-राजादि की आज्ञा से शस्त्र तैयार करना; तथा कुआ, बावड़ी, तालाब खुदधाना नैशस्त्रिकी क्रिया है / 16- अपने आप अथवा कुत्तों के द्वारा मृगादि जीवों का शिकार करना; या जिस कार्य को नौकर कर सकते हैं उस क्रूर कार्य को स्वयं करना, स्वहस्ति की क्रिया है / १५-अन्य जीव अथवा अजीव के प्रयोग से अमुक पदार्थ अपने पास मँगवाने की कोशिश करना आनयनिकी क्रिया है / १८-जीव या अजीव पदार्थों का छेदन भेदन करना, विदारणिकी क्रिया है। १९-उपयोग विहीन शून्य चित्त से पीनों को उठाना, रखना; स्वयं उठना, बैठना चलना, फिरना, खाना, पीना, सोना आदि कार्य करना अनाभोगिकी क्रिया है / २०-इसलोक और परलोक के विरुद्ध कार्य करना अनवकांक्षा प्रत्ययिकी क्रिया है / २१-मन, वचन, और काय संबंधी जो बुरे ध्यान हैं, उनके अंदर प्रवृत्ति करना; निवृत्ति नहीं करना प्रायोयिकी क्रिया है / २२-ऐसा क्रूर कर्म करना कि जिससे आठों कर्मों का बंध एक साथ हो-समुदानि की
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy