________________ ( 462) तादि दुर्गुण स्थित हैं। २-अपनी अपेक्षा बड़ी ऋद्धिवाले देवों को देखकर, और पूर्वभव में विशेष रूपसे पुण्यसंचय नहीं किया इसका विचार कर, देवता भी बहुत समयतक चिन्तित रहते हैं। ३-हमने पूर्व जन्म में पुण्यकर्म करने की सामग्री मिलने पर भी पुण्यकर्म नहीं किये, इससे हमें आभियोगिक (नौकर ) देवों का पट्टा मिला है। ऐमा सोच अपने से विशेष प्रकार के ऋद्धि धारी देवों को देख, देवता भारी दुखी होते हैं। ४-देव दूसरे देवों की विमान, स्त्री, रत्न और उपवन की सम्पत्ति देखकर ईयॉग्नि से रातदिन यावज्जीवन जलते रहते हैं। ५-दीनवृत्तिवाले देव इसतरह आर्त-रुदन करते हैं कि,-" हे नाथ ! हे भो ! हे देव ! अन्य देवोंने हमें लूट लिया है। आप प्रसन्न होकर हमारी रक्षा कीजिए।" ६-कांदर्पिक देव पुण्ययोग से स्वर्ग मिलने पर भी काम, क्रोध और भयसे भातुर होकर स्वस्थता का अनुभव नहीं करते हैं। अर्थात् कामी देव न अपनी इच्छा ही पूरी कर सकते हैं और न स्वस्थ ही रह सकते हैं। 7 देवलोक से बचने के चिन्हों को देखकर, वे दुखी होते हैं। और यह सोचकर बार बार रुदन करते हैं कि, अब हम इस समृद्धि को छोड़ कर कहाँ जायेंगे / देवों में भी क्रोध, मान, माया और लोभ है / मगर लोभ का जोर विशेषरूप से है / वे लोम से लड़ाई करते हैं और लोभ