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________________ (447) देती है / ६-खारे और मीठे पानी के जीवों के परस्पर, मिलनेसे, दुःख होता है / बरतन के अंदर पानी का जीव तपाया जाता है और पीने की इच्छावाले प्राणी उस को पी जाते हैं। ७-अग्निकाय के जीव पानीसे बुझा दिये जाते हैं; तप्त लोहे में रहे हुए जीव घनों और हथोड़ोंसे कूटे जाते हैं और वे ईंधन वगेरहसे जला दिये जाते हैं। (-वायुकाय प्राप्त जीव पंखें आदिसे मारे जाते है। इसी तरह शीत और उष्ण वस्तओं के संयोग के समय भी वे क्षण क्षण में नष्ट होते रहते हैं। ९-पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण का वायु परस्पर एक रहता है इससे वायुकाय के जीव मरते हैं; मुँहमेंसे निकलते हुए श्वासोश्वाससे भी वायुकाय के जीव मरते हैं और सप आदि भी उन को भक्षण कर जाते हैं। १०सूरण आदि दश प्रकार के कंद के रूप में उद्भवित पनस्पतिकाय के जीव भेदे जाते हैं और अग्नि की ताप लगाकर पकाये जाते हैं। ११-वे सुखाये जाते हैं; पेले जाते हैं। परस्पर संघर्ष होकर उनमें आग उत्पन्न होती है और वे जल जाते हैं / क्षारादिसे भी उनके प्राण हरण किये जाते हैं और जीभ के रसिक भी तो उनका आचार ही पका डालते हैं। १२-छोटी और मोटी सब प्रकार की वनस्पतियों को लोग खा जाते हैं। वायु का प्रबल वेग उनको उखाड़ देता है; अग्नि उनको जलाकर राख बना देती है और जल उनको बही ले
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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