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________________ (537) विभक्त हैं। १-नरक; २-तिर्यंच; ३-मनुष्य और ४-देव। इन गतियों के जीव कर्म-पीडित और दुःखी है / नरक गति के दुःख / आयेषु त्रिषु नरके पूष्णं शीतं परेषु च ! .. चतुर्थे शीतमुष्णं च दुःखं क्षेत्रोद्भवं स्विदम् // 6 // नरकेषूष्णशीतेषु चेत्पतेल्लोहपर्वतः / विलीयेत विशीयेंत तदा भत्रमवाप्नुवन् // 7 // .. उदीरितमहादुःखा अन्योन्येनासुरेश्च ते / इति त्रिविधदुःखार्ता वसन्ति नरकावन्नौ // 8 // समुत्पन्ना घटीयन्त्रेष्वधार्मिकसुरैर्वलात् / आकृष्यन्ते लघुद्वारा यथा सीसशलाकिका // 9 // गृहीत्वा पाणिपादादौ वज्रकंटकसंकटे / भास्फाल्यन्ते शिलापृष्टे वासांसि रजकैरिव // 10 // दारुदारं विदार्यन्ते दारुणैः क्रकचैः क्वचित् / तिळपेशं च पिष्यन्ते चित्रयन्त्रैः क्वचित्पुनः // 11 // पिपासार्ताः पुनस्तप्तत्रपुमीसकवाहिनीम् / नदी वैतरणी नामावतार्यन्ते वराककाः // 12 // .. छायाभिकांक्षिणः क्षिप्रमसिपत्रवनं गताः / वत्र शस्त्रैः पतद्भिस्ते छिद्यन्ते तिलशोऽसकृत // 13 //
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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