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________________ (418 ) का जीवन है / यदि वे थोड़े से इकट्ठे हो जायँ तो मनुष्य का जीवन तत्काल ही चला जाय-और जाता ही है। वज्रवृषभनाराच संहननवाले शरीरों में भी अनित्यता आक्रमण कर रही है / तो फिर केले के गर्भ के समान निर्बल और कोमल शरीरवाले, प्राणियों के ऊपर वृद्धावस्था आकृमण करे, तो उसमें विशेषता ही क्या है ? (3) ( चक्रवर्ती भरत और नल, राम, युधिष्ठिर के समान महापुरुष भी जब जरा-ग्रस्त हो गये थे तब दूसरों की तो बात ही क्या है ?) जो मनुष्य इस असार शरीर के अंदर स्थिरता चाहता है, वह पुराने और सड़े हुए तृण से बने हुए पुतले में मानो मनुष्य जीवन को देखता है। ( 4 ) मृत्यु रूपी सिंह के मुख कोटर में-जीभ और तालु के बीच मेंबसनेवाले जीवों की मंत्र, यंत्र, और औषध; कोई भी रक्षा नहीं कर सकता है। (5) ( सिंह के मुँह में फँसा हुआ जन्तु जैसे बच नहीं सकता है, वैसे ही यमरान के पंजे में फंसा हुआ मनुष्य भी, मंत्र, यंत्र या चतुर डॉक्टरो की चिकित्सा से बच नहीं सकता है / ) मनुष्य के ऐसे जीवन को धिक्कार है कि, जिस पर आगे बढ़ने पर वृद्धावस्था आक्रमण करती है। तत्पश्चात् उसे शीघ्र ही यमराज उठा ले जाता है / (6) ( मनुष्य की आयु सौ बरस की है। उसकी प्राथमिक अवस्था खेल कूद में ' जाती है, कुछ समय बेसमझी से खोदिया जाता है। कुछ समय यौवन की उन्मतता में जाता है, और कुछ कुटुंब पालन के
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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