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________________ ( 372 ) प्रकार पाप का त्याग करोगे तो कषाय छूट जायेंगे / इस तरह यह बात सिद्ध होती है कि, जन्म के अभाव से पाप का अभाव होता है और पाप के अभाव से जन्म का अभाव होता है / तात्पर्य कहने का यह है कि, मान और लोम के त्याग से चारों कषाय छूट जाते हैं / वैराग्य के रंग में पूर्णतया वही रंगा जाता है जो कषायों को छोड़ देता है; और पूज्य भी वही बनता है। कहा है कि:सक्का सहेउं आसाइ कंटया, अओ भयाउच्छहया नरेणं / अणासए जो उ सहिज कंटए, वईमए कन्नसरे स पुज्जो // भावार्थ-आशा से मनुष्य लोहे के काँटे सहन कर सकता है ( कई वेषधारी पुरुष लोहे के खीलेवाले पटड़े पर सोते हैं। ) मगर ऐसे पुरुष भी वचन रूपी काँटों से घबरा जाते हैं। इसलिए पूज्य मनुष्य वही होता है, जो आशारहित हो-कठोर वचन रूपी काँटों के कानों में प्रविष्ट होने पर भी समभावी रहता है / बाणों के घाव समझाते हैं, मगर वचन के घाव कभी नहीं रुझते हैं; वे जीवन पर्यंत रहते हैं; मरते तक कठोर वचन याद आते हैं / इसी लिए वचन ज्यादा दुःखदायी होते हैं / इन वचनघावों को वही सह सकता है जो कषाय-विजयी होता है। दूसरे उसकी पीड़ा को नहीं सह सकते हैं / द्रव्यार्थी मनुष्य युद्ध में जा कर बाण, तलवार, बंदूक आदि के प्रहार सहन करते
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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