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________________ ( 363 ) बंद किया ? " उस पुरुषने उतर दिया:-" महाराज प्रमाद ही आया / " वृद्ध मुनिने फिर भी उस पुरुष को टोका। उसने यही उत्तर दिया कि 'प्रमाद ' हो आया / पुरुष विशेष रूपसे स्वाध्याय के लिए तत्पर होता था, इतने ही में निद्राने उस पर अपना पूरा अधिकार जमा लिया / वृद्ध. मुनिने उसको पुकारा, मगर वह नहीं बोला / इस लिए उसने और जोरसे पुकारा, तब उस पुरुषने उत्तर दिया:-" मैं अर्थ की विचारणा कर रहा हूँ। ज्यादा गड़बड़ न करो।" इस तरह से निद्राने उस पुरुष को असत्य और क्रोध के आधीन कर दिया / वृद्ध मुनिने कहा:-" मुनि को असत्य नहीं बोलना चाहिए और क्रोध को छोड़ना चाहिए / " यह सुन कर निद्राभिभूत मुनिने कहा:-" हाँ, जूठ भी बोला और क्रोध भी किया / जाओ तुमसे बने सो करो / मुझ में शक्ति होगी तो मैं स्वयमेव अपना निर्वाह कर लूंगा। इस प्रकार से एक एक करके उस मुनि के ऊपर मोह राजा के सुभट अधिकार करने लगे / अंत में वृद्ध गुरुने उस पुरुष को मुनि समुदाय में से बाहिर निकाल दिया। जब वह निराश्रय हुआ तब मोहराजा के सब सुमटोंने उस पर एक साथ हमला किया और वे उसको पकड़ कर मोहराना के राज्य में ले गये / इस तरह यह पुरुष परम्परा से मरण पाकर जब निगोद में चला गया तब मोहराना का कलेजा ठंडा हुआ।"
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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