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________________ ( 351) बुरा था कि वे बलि को पैदाही न करते ? वामनरूप धारण करना, भिक्षा माँगना; तीन पैर पृथिवी ले लेना; बलि को, उसकी पीठ में पैर रावकर, पाताल में पहुँचाना; और उसको मरते समय वरदान देना कि,-" दीवाली के समय चार दिन तक तेरी पूजा होगी, मैं तेरा द्वारपाल रहूँगा / " आदि बाते असंबद्ध हैं। ये सर्वज्ञभाव में शंका उत्पन्न करती हैं। . परशुराम का अवतार क्षत्रियों का नाश करने के लिए हुभा / इसी लिए क्षत्रियों में और ब्राह्मणों में वैरभाव उत्पन्न हो गया / इसी कारण से 21 वार पृथ्वी निःक्षत्रिय हुई। फिर अवान्तर में अब्राह्मणी पृथ्वी हुई / बहुत बड़ा जुल्म हुआ। यदि जमदग्नि के अपराध का विचार किया जाकर उसको दंड दिया जाता तो इतना अनर्थ न होता / कथा से यह बात सिद्ध होती है कि, जबर्दस्ती से किसी के साथ व्याह करनेवाले का पक्षग्रहण करके भगवानने जन्म लिया / यदि कथा की बात सत्य हो तो ऐसे भगवान सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान नहीं हो सकते हैं। सर्वशक्तिमान जो होता है, वह पहिले ही से परस्पर के विरोधी काय को देख लेता है। सर्वशक्तिमान कभी जन्म मरणादि की विडंबना में नहीं पड़ता। क्या एक सामान्य मनुष्य भी एक छोटे से कार्य के लिए बड़े बड़े अनर्थ कर सकता है ? कदापि नहीं। स्वयं कर्ता ही जब कार्य रूप हो जायगा, तब फिर अन्य कर्ता कौन गिना
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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