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________________ (39) बात है / जो सर्वज्ञ थे उनको यह तो पहिले ही से ज्ञात होना चाहिए था कि, शंख नामा दैत्य उत्पन्न होगा; वह वेदों को पाताल में ले जायगा और उसके पापसे वेदों को वापिस लाने के लिए पृथ्वी पर मुझ को अवतार लेना पड़ेगा। यदि वे इतना जान गये थे तो फिर उन्हें चाहिए था कि वे शंख को पैदा ही न होने देते / क्योंकि जब ने सर्वशक्तिमान थे तब ऐसा करना उनके लिए कोई कठिन कार्य न था। एक बात और भी है; उनके मतानुयायियों के मतानुसार जगत्को पैदा भी वही अवतार लेनेवाले भगवान करते हैं। फिर उन्होंने शंख को उत्पन्न क्यों किया / इसका दूसरी तरह से विचार किया जायगा। प्रथम तो इसकी सत्यता में ही शंका होती है। क्यों किशंख राक्षस, अर्थरूप वेदों को पाताल में ले गया या शद्वात्मक को ? या पुस्तकाकार को ? अगर वह अर्थात्मक वेद ले गया तो उससे कुछ मूल वेदों की हानि नहीं होती। शब्दात्मक जा नहीं सकते; क्योंकि शब्द क्षणिक है। तब यह संभव है कि वह पुस्तकाकार वेदों को ले गया होगा। ता इससे क्या बनता बिगड़ता है ? क्योंकि हजारों प्रदिया देश में लिखी हुई होंगी, उनमें से यदि एक चली गई तो उसके अभाव से वेद नष्ट नहीं होनाते / ऐसी और भी कई बातें इस विषय में कही मा सकती हैं / और इसीसे मत्स्यावतार का प्रयोजन ठीक नहीं मालूम होता है।
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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